Wednesday, December 23, 2009

पत्थर के आकार पर दिखती है बहते समय की छाप
पर उसे देख कर भी पत्थर बने रहते हैं हम और आप

जगमग जगमग नगर में, डगमग मन दिन रात
छुपा छुपा कर चल रहे,सब अपने मन की बात

1 comment:

  1. क्या बात है अशोक जी.
    जगमग जगमग नगर में, डगमग मन दिन रात
    छुपा छुपा कर चल रहे,सब अपने मन की बात

    यहाँ दिल से दिल की कोई बात ही नहीं होती
    छुप्पम छुपाई में प्रीत जाने कहाँ जाती है खोती

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